‘सु फ्रॉम सो’ (Su From So) एक कन्नड़ हॉरर-कॉमेडी फिल्म है, जो 25 जुलाई 2025 को रिलीज हुई। जेपी थुमिनाड द्वारा निर्देशित और लिखित यह फिल्म हंसी, डर और भावनाओं का एक अनोखा मिश्रण पेश करती है। यह न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि सामाजिक संदेश और शानदार अभिनय के साथ दर्शकों के दिलों में जगह बनाती है।

कहानी: हंसी और डर का तालमेल
‘सु फ्रॉम सो’ की कहानी एक छोटे से गांव में रहने वाली सुप्रिया (सु) नाम की युवती के इर्द-गिर्द घूमती है। सु एक साधारण, मेहनती और हंसमुख लड़की है, जो अपने परिवार और दोस्तों के साथ खुशहाल जीवन जी रही है। उसकी जिंदगी में तब एक अप्रत्याशित मोड़ आता है, जब वह एक रहस्यमयी आत्मा “सो” से टकराती है। यह आत्मा डरावनी होने के साथ-साथ हास्यप्रद हरकतों से भरी है, जो सु के जीवन में हलचल मचा देती है। कहानी में हॉरर और कॉमेडी का संतुलन इसकी सबसे बड़ी ताकत है। जहां डरावने दृश्य आपको अपनी सीट से उछाल देते हैं, वहीं मजेदार संवाद और किरदारों की हरकतें हंसी का ठहाका लगवाती हैं।
कहानी का एक और महत्वपूर्ण पहलू इसका सामाजिक संदेश है। फिल्म ग्रामीण भारत में महिलाओं की स्थिति, परिवार के महत्व और सामुदायिक रिश्तों को संवेदनशीलता के साथ दर्शाती है। यह सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं रहती, बल्कि दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है। कहानी का अंत भावनात्मक और प्रेरणादायक है, जो दर्शकों को एक संतोषजनक अनुभव देता है।
अभिनय: किरदारों की जीवंतता
सुप्रिया ने सु के किरदार में जान डाल दी है। उनकी कॉमिक टाइमिंग, डरावने दृश्यों में सहज अभिनय और भावनात्मक क्षणों में गहराई इस फिल्म को खास बनाती है। वह एक साधारण लड़की के डर, साहस और हास्य को इतनी खूबसूरती से दर्शाती हैं कि दर्शक उनके किरदार से तुरंत जुड़ जाते हैं। रमेश पंडित, जो सु के दोस्त की भूमिका में हैं, अपनी मजेदार टिप्पणियों और सहज अभिनय से हंसी का तड़का लगाते हैं। अनु प्रभाकर ने सु की मां के किरदार में ममता और मजबूती का शानदार मिश्रण पेश किया है। “सो” की आत्मा का किरदार भी अपनी अनोखी हरकतों और रहस्यमयी अंदाज से दर्शकों का ध्यान खींचता है। सहायक किरदारों की टोली कहानी को और भी रंगीन बनाती है।
तकनीकी उत्कृष्टता: सिनेमैटोग्राफी और संगीत
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी एक और मजबूत पक्ष है। ग्रामीण परिवेश को खूबसूरती से कैप्चर किया गया है, जो कहानी को और प्रामाणिक बनाता है। रात के डरावने दृश्यों में गहरा नीला रंग और दिन के दृश्यों में जीवंत रंगों का उपयोग दृश्यात्मक रूप से प्रभावशाली है। बैकग्राउंड म्यूजिक कहानी के मूड को पूरी तरह से पूरक बनाता है। हॉरर दृश्यों में तनावपूर्ण संगीत दर्शकों की धड़कनें बढ़ा देता है, जबकि कॉमेडी दृश्यों में हल्का-फुल्का संगीत माहौल को हल्का करता है। गानों की रचना भी कहानी के साथ मेल खाती है और दर्शकों को बांधे रखती है।
निर्देशन और लेखन: जेपी थुमिनाड की कला
जेपी थुमिनाड का निर्देशन इस फिल्म की रीढ़ है। उन्होंने हॉरर, कॉमेडी और ड्रामा के बीच संतुलन बनाते हुए एक ऐसी कहानी बुनी है, जो हर पल दर्शकों को जोड़े रखती है। सामाजिक मुद्दों को हल्के-फुल्के अंदाज में पेश करना उनकी लेखन कला को दर्शाता है। प्रत्येक दृश्य को सावधानीपूर्वक रचा गया है, जो कहानी को गति देता है।
दर्शकों के लिए खास
‘सु फ्रॉम सो’ हर तरह के दर्शकों के लिए कुछ न कुछ लेकर आती है। हॉरर प्रेमियों के लिए डरावने दृश्य, कॉमेडी प्रेमियों के लिए हास्यप्रद पल और भावनात्मक कहानियों के शौकीनों के लिए सु और उसके परिवार की कहानी। यह फिल्म परिवार और दोस्तों के साथ देखने के लिए आदर्श है।
कमियां
कुछ दृश्यों में कहानी थोड़ी धीमी पड़ती है, और कुछ किरदारों को और गहराई दी जा सकती थी। हॉरर के शौकीनों को शायद कुछ दृश्य और डरावने लगें।
निष्कर्ष
‘सु फ्रॉम सो’ एक ऐसी फिल्म है, जो मनोरंजन, भावनाओं और सामाजिक संदेश का शानदार मिश्रण है। यह कन्नड़ सिनेमा में एक ताजा हवा की तरह है।
रेटिंग: 4/5
कहां देखें? सिनेमाघरों में।
अवधि: 2 घंटे 10 मिनट
शैली: हॉरर, कॉमेडी, ड्रामा