नोएडा फिल्म सिटी पर संकट: किसानों की चेतावनी से रुक सकता है काम, जानें पूरा मामला

उत्तर प्रदेश का ग्रेटर नोएडा (यमुना प्राधिकरण क्षेत्र) आजकल एक बड़े आंदोलन और खींचतान का केंद्र बना हुआ है। यहां पर बनने वाली नोएडा फिल्म सिटी, जो कि एशिया की सबसे बड़ी फिल्म सिटी बताई जा रही है, अब किसानों के आंदोलन की वजह से विवादों में घिर गई है। किसानों ने साफ चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वे 28 अगस्त से फिल्म सिटी, बिल्डर प्रोजेक्ट, यूनिवर्सिटी और अन्य निर्माण कार्य पूरी तरह रोक देंगे।

यह चेतावनी कोई हल्की धमकी नहीं है, बल्कि जमीन और मुआवजे से जुड़े गहरे असंतोष का नतीजा है। इस संघर्ष के कारण पूरे प्रोजेक्ट पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं।

नोएडा फिल्म सिटी

किसानों का आंदोलन: 29 दिनों से जारी संघर्ष

रबूपुरा (नोएडा) में किसान पिछले 29 दिनों से धरने पर बैठे हैं। यह आंदोलन भारतीय किसान यूनियन (लोक शक्ति) के बैनर तले चल रहा है।
किसानों का कहना है कि यमुना प्राधिकरण और सरकार ने उन्हें जिन वादों के साथ जमीन अधिग्रहित की थी, वे पूरे नहीं हुए। इसके चलते वे मजबूरन सड़कों पर उतरने को बाध्य हुए हैं।

धरने की शुरुआत शांतिपूर्ण तरीके से हुई थी, लेकिन अब किसानों ने अल्टीमेटम दे दिया है कि 28 अगस्त से किसी भी तरह का निर्माण कार्य नहीं होने दिया जाएगा।

किसानों की प्रमुख मांगें

  1. 7% आबादी भूखंड

किसानों की मुख्य मांग यह है कि अधिग्रहित जमीन के बदले उन्हें 7% आबादी भूखंड दिए जाएं। उनका कहना है कि यह उनका वैधानिक और सामाजिक अधिकार है, जिसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।

  1. 64.7% अतिरिक्त मुआवजा

भूमि अधिग्रहण में समय के साथ बढ़ते दामों और हाईकोर्ट के आदेशों को देखते हुए किसान 64.7% अतिरिक्त मुआवजा चाहते हैं। किसानों का आरोप है कि सरकार ने वादे किए, लेकिन आज तक उन्हें पूरा नहीं किया।

  1. अवैध भूजल दोहन पर रोक

निर्माण कार्यों के दौरान प्रोजेक्ट कंपनियां बड़ी मात्रा में भूजल का दोहन कर रही हैं। किसान इसे अवैध मानते हुए रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इससे इलाके की पर्यावरणीय स्थिति और कृषि पर बुरा असर पड़ रहा है।

  1. नए भूमि अधिग्रहण कानून का पालन

किसान लगातार यह मुद्दा उठा रहे हैं कि 2013 के नए भूमि अधिग्रहण कानून के अनुसार उन्हें चार गुना मुआवजा और 10% आबादी भूखंड मिलना चाहिए। लेकिन प्राधिकरण ने इन प्रावधानों को लागू नहीं किया।

आंदोलन की पृष्ठभूमि

नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में पिछले कई दशकों से किसान आंदोलनों का इतिहास रहा है। जब भी बड़े औद्योगिक या इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स की घोषणा होती है, तो जमीन अधिग्रहण सबसे बड़ा मुद्दा बन जाता है। 2010 से 2012 के बीच भी जब यमुना एक्सप्रेसवे और जेवर एयरपोर्ट जैसे प्रोजेक्ट्स के लिए जमीन ली गई थी, तब किसानों ने बड़े पैमाने पर विरोध किया था।
उस समय भी 64.7% मुआवजा और भूखंड आबंटन का मुद्दा उठा था। आज, जब नोएडा फिल्म सिटी जैसा महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट शुरू हुआ है, वही पुरानी मांगें फिर से गरम हो गई हैं।

नोएडा फिल्म सिटी का महत्व

नोएडा फिल्म सिटी सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश का एक ड्रीम प्रोजेक्ट है। इसे यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (YEIDA) द्वारा विकसित किया जा रहा है। पहले चरण में लगभग 230 एकड़ जमीन, और दूसरे चरण में 750 एकड़ जमीन अधिग्रहित की जा रही है। यहां पर फिल्म स्टूडियो, प्रोडक्शन हाउस, टेक्निकल हब, यूनिवर्सिटी और फिल्म से जुड़े अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर बनाए जाने हैं। इसका उद्देश्य मुंबई जैसी भीड़भाड़ वाली फिल्म इंडस्ट्री का बोझ कम करना और उत्तर भारत को नया सिनेमा और मीडिया हब बनाना है। सरकार का दावा है कि इससे हजारों रोजगार पैदा होंगे और विदेशी निवेश भी आएगा। लेकिन अगर किसानों का आंदोलन तेज होता है और निर्माण कार्य रुकता है, तो इस प्रोजेक्ट पर गंभीर असर पड़ सकता है।

शासन और सरकार की भूमिका

अब तक किसानों और प्राधिकरण के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। प्राधिकरण का कहना है कि वे किसानों की मांगों पर विचार कर रहे हैं, लेकिन कानूनी और वित्तीय बाधाएं आ रही हैं। दूसरी ओर, किसान नेताओं का आरोप है कि सरकार सिर्फ आश्वासन देती है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं करती। किसान नेता श्योराज सिंह का कहना है—“जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं होंगी, हम फिल्म सिटी और अन्य प्रोजेक्ट्स का काम नहीं होने देंगे।”

अगर काम रुका तो संभावित असर

  1. रोजगार पर असर

फिल्म सिटी प्रोजेक्ट से हजारों नौकरियों की उम्मीद है। अगर काम रुकता है तो यह रोजगार संकट को जन्म देगा।

  1. निवेश पर असर

यह प्रोजेक्ट अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को आकर्षित कर सकता है। आंदोलन और निर्माण रुकने से निवेशक पीछे हट सकते हैं।

  1. स्थानीय अर्थव्यवस्था पर असर

नोएडा और जेवर क्षेत्र की अर्थव्यवस्था फिल्म सिटी और एयरपोर्ट जैसे प्रोजेक्ट्स पर निर्भर है। इनके अटकने से स्थानीय बिज़नेस भी प्रभावित होंगे।

  1. कानूनी जटिलताएँ

अगर किसान आंदोलन लंबा चला तो कोर्ट तक मामला जा सकता है, जिससे प्रोजेक्ट और ज्यादा देरी से पूरा होगा।

आंदोलन का भविष्य

अगर सरकार और किसान आमने-सामने आ गए, तो यह आंदोलन और हिंसक भी हो सकता है। किसानों ने साफ कर दिया है कि वे किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेंगे। प्रशासन के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या वे कानून के अनुसार किसानों को मुआवजा और भूखंड देंगे या नहीं। अगर समाधान जल्द नहीं निकला तो फिल्म सिटी का सपना अधर में लटक सकता है।

नतीजा

नोएडा फिल्म सिटी का प्रोजेक्ट उत्तर प्रदेश की पहचान बदल सकता है। यह सिर्फ एक निर्माण परियोजना नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक परिवर्तन का प्रतीक है। लेकिन जब तक किसानों का भरोसा नहीं जीता जाएगा, तब तक यह सपना अधूरा रहेगा। सरकार को चाहिए कि वह संवाद और न्यायपूर्ण समाधान के जरिए इस संकट को खत्म करे, ताकि फिल्म सिटी और किसानों दोनों का भविष्य सुरक्षित हो सके।

नोएडा फिल्म सिटी पर मंडराता संकट सिर्फ एक प्रोजेक्ट की कहानी नहीं है, बल्कि यह किसानों के अधिकार, मुआवजा और न्याय की लड़ाई भी है। किसानों ने 28 अगस्त से निर्माण रोकने की चेतावनी दी है। अगर समाधान नहीं निकला, तो रोजगार, निवेश और विकास की बड़ी योजनाएं प्रभावित होंगी।

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