चेतेश्वर पुजारा ने अपने 13 वर्षों के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर को समाप्त कर दिया है। उनके लिए बल्लेबाजी केवल गेंद का सामना करना नहीं, बल्कि एक तरह का ध्यान था। एक मुश्किल पिच पर 525 गेंदें खेलने का मतलब था मानसिक सहनशक्ति और दिग्गज प्रयास। पुजारा की बल्लेबाजी शैली शायद टेस्ट क्रिकेट के लिए सबसे उपयुक्त थी, खासकर जब बात ऑस्ट्रेलिया में उनके प्रदर्शन की आती है।

जब उनसे उनकी सबसे यादगार पारी के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ वहां की मुश्किल पिच पर नाबाद 145 रन की पारी को सबसे खास बताया। इसके अलावा, 2018 में एडिलेड में 123 रनों की पारी और 2017 में बेंगलुरु में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 92 रन की मुकाबली भी उनके लिए महत्वपूर्ण रही।
पुजारा ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया जैसा मजबूत विपक्ष हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है। यहां तक कि अगर जीत करीब हो, तब भी वे आसानी से मैच नहीं छोड़ते। उन्होंने अपनी प्रारंभिक अंतरराष्ट्रीय पारी ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेली थी, इसलिए उन्होंने उनसे मुकाबले की कला जल्दी सीख ली थी।
स्पिन गेंदबाजी के खिलाफ उनका तरीका भी शानदार था। विशेष रूप से नाथन लायन के खिलाफ, उनकी सटीक फ़ुटवर्क और गेंदबाज़ी की लंबाई को भटका देने वाली रणनीति ने उन्हें सफल बनाया। पुजारा का मानना है कि स्पिन के खिलाफ हर खिलाड़ी को अपनी तकनीक ढूंढनी चाहिए और उन्होंने अपने तरीके में खामियां कम की।
525 गेंद खेलने के बारे में उन्होंने कहा कि इसके लिए धैर्य, प्रतिबद्धता और टीम के लक्ष्य के प्रति समर्पण चाहिए। वह अपने अनुभव और मनोबल के दम पर इतने लंबे समय तक टिके रह सके।
उन्होंने बताया कि उनके क्रिकेट के शुरुआती दिनों में, जब उनकी टीम कमजोर थी, तब भी उन्होंने केवल सौ रन बनाने पर संतुष्ट नहीं होना सीखा और बड़े स्कोर बनाने की कोशिश की। यही आदत उनके करियर की खासियत बनी।
अंत में, उन्होंने कहा कि वे खुद को क्लासिकल टेस्ट बल्लेबाज के आखिरी उदाहरण के रूप में नहीं देखते, क्योंकि अब ज्यादातर खिलाड़ी टी20/वनडे से टेस्ट क्रिकेट में आते हैं और उनकी शैली अधिक आक्रामक होती है। हालांकि, वे अपनी शैली से जुड़े रहे, जो मुख्य रूप से डिफेंसिव थी।
चेतेश्वर पुजारा ने 24 अगस्त 2025 को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के साथ-साथ घरेलू क्रिकेट के सभी फॉर्मेट से संन्यास ले लिया। उन्होंने 103 टेस्ट मैचों में 7195 रन बनाए और अपनी धैर्यपूर्ण और क्लासिकल बल्लेबाजी से खास पहचान बनाई। पुजारा ने खासतौर पर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2018-19 की ऐतिहासिक सीरीज में यादगार प्रदर्शन किया था। उनकी बल्लेबाजी केवल रन बनाने तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह मानसिक सहनशक्ति और टीम के लिए समर्पण का प्रतीक थी। पुजारा ने इंग्लैंड की ग्रीन टॉप पिच, दक्षिण अफ्रीका के डेल स्टेन और मोर्ने मोर्कल, और ऑस्ट्रेलिया के पैट कमिंस जैसे तेज गेंदबाजों का साहसपूर्वक सामना किया। उन्होंने खुद को क्लासिकल टेस्ट बल्लेबाज के आखिरी उदाहरण के रूप में नहीं माना क्योंकि अब अधिकांश खिलाड़ी टी20 और वनडे से टेस्ट क्रिकेट में आते हैं।
यह निर्णय उन्होंने सोच-विचार कर लिया और परिवार व टीम के वरिष्ठ खिलाड़ियों से राय लेकर किया। उन्होंने यह भी माना कि युवा खिलाड़ियों को मौका मिले, इसलिए यह सही समय था संन्यास लेने का।
यह महान बल्लेबाज भारतीय क्रिकेट के इतिहास में उनकी धैर्य और समर्पण के लिए याद रखे जाएंगे।