कभी-कभी क्रिकेट में जीत सिर्फ़ मैदान पर नहीं, बल्कि किसी के दिल में जीतना होता है। संजू सैमसन की कहानी भी कुछ ऐसी ही है — उतार-चढ़ाव से भरी, आलोचनाओं से घिरी, लेकिन भरोसे और हिम्मत से सजी।

वक़्त जो आसान नहीं था
साउथ ज़ोन से दलीप ट्रॉफी में बाहर होना, उससे पहले इंटरनेशनल टीम में बार-बार अंदर-बाहर होना — यह सब किसी भी खिलाड़ी के आत्मविश्वास को हिला सकता है। 8-9 साल के लंबे करियर में सिर्फ़ 15 इंटरनेशनल मैच! संजू के लिए यह सफर आसान नहीं रहा।
“टीम में आना-जाना, लंबे समय तक बेंच पर बैठना… यह सब मन को तोड़ देता है,” उन्होंने रविचंद्रन अश्विन से कहा।
वक़्त जो आसान नहीं था
साउथ ज़ोन से दलीप ट्रॉफी में बाहर होना, उससे पहले इंटरनेशनल टीम में बार-बार अंदर-बाहर होना — यह सब किसी भी खिलाड़ी के आत्मविश्वास को हिला सकता है। 8-9 साल के लंबे करियर में सिर्फ़ 15 इंटरनेशनल मैच! संजू के लिए यह सफर आसान नहीं रहा।
“टीम में आना-जाना, लंबे समय तक बेंच पर बैठना… यह सब मन को तोड़ देता है,” उन्होंने रविचंद्रन अश्विन से कहा।

वो एक लाइन जिसने सब बदल दिया
ड्रेसिंग रूम में उदास बैठे सैमसन के पास गौतम गंभीर आए।
“क्या हुआ?”
संजू बोले — “मौका मिला था, लेकिन कैश इन नहीं कर पाया।”
गंभीर मुस्कुराए —
“तो? मैं तुम्हें टीम से तब निकालूँगा जब तुम 21 बार डक मारोगे।”
यह सिर्फ़ एक लाइन नहीं थी, यह भरोसे का प्रमाण था। एक खिलाड़ी को यह एहसास दिलाना कि एक-दो असफलताएँ उसकी किस्मत तय नहीं करतीं — यही असली कोचिंग है।

भरोसे का रंग
उसके बाद बांग्लादेश के खिलाफ़ संजू ने शतक ठोका, 50.00 की औसत के साथ। और फिर साउथ अफ्रीका में 4 मैचों में दो शतक — यह बताने के लिए काफी था कि जब किसी पर भरोसा किया जाए, तो वह अपने खेल से जवाब देता है।
संजू की यह कहानी सिर्फ़ क्रिकेट के मैदान की नहीं, बल्कि ज़िंदगी की भी है —
कभी-कभी जीतने के लिए सिर्फ़ रन नहीं, बल्कि किसी का अटूट भरोसा चाहिए होता है।